मोदी के खास मदन राठौड़ के साथ क्या राजस्थान को मिलेंगे नए गठजोड़
विधानसभा का टिकट नहीं मिलने से नाराज पार्टी छोड़ने की तैयारी करने वाले मदन राठौड़ को बीते सात माह में वह सब कुछ मिल गया, जिसकी शायद उन्हें उम्मीद भी नहीं थी। पहले राज्यसभा का टिकट और अब प्रदेश की कमान। दरअसल, राठौड़ का 2023 के विधानसभा चुनाव में सुमेरपुर से टिकट काट दिया गया था, जबकि वह दो बार से विधायक थे। इससे नाराज होकर उन्होंने निर्दलीय लड़ने की तैयारी कर ली थी। उसी समय खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोन राठौड़ के पास आया। मोदी से बात होने के बाद राठौड़ फिर से पार्टी के लिए पूरी शिद्दत के साथ जुट गए। इसके बाद फिर फरवरी में उन्हें राज्यसभा मिल गई। मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बना पार्टी ने ओबीसी के अपने वोटर्स को एक संदेश देने की कोशिश करते हुए सोशल इंजीनियरिंग को भी साधा है। राठौड़ को प्रधानमंत्री मोदी का करीबी माना जाता है। इससे एक संदेश यह ही चला गया कि पीएम मोदी अब राजस्थान पर फिर से ध्यान दे रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान में जब भाजपा की सरकार बनी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजस्थान को लेकर दिलचस्पी कम हो गई थी। चर्चाएं हैं कि मोदी राजस्थान में जिस ओबीसी चेहरे को सीएम बनाना चाहते थे, वह चुनाव हार गए थे। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला की पसंद के भजनलाल शर्मा को मौका मिल गया, लेकिन उसके बाद से ही राजस्थान भाजपा के हालात बिगड़ने लगे।
सोशल इंजीनियरिंग पर पार्टी ने ध्यान ही नहीं दिया। भजनलाल शर्मा को उतना अनुभव नहीं था कि वह कुछ समझ पाते। ऐसे में जाट, मीणा और गुर्जर नाराज हो गए। अफसरशाही प्रदेश में हावी होती गई। जिसके कारण पार्टी को लोकसभा चुनावों में जोरदार झटका लग गया। जातीय समीकरण की अनदेखी का नतीजा रहा कि बीजेपी 25 में 11 अहम सीट हार गई।ये 11 सीटें बीजेपी को भारी पड़ी। कांग्रेस भले ही विधानसभा का चुनाव हार गई, लेकिन नई भाजपा पर वह भारी पड़ गई। अभी तक सदन से लेकर सड़क तक कांग्रेस हर मुद्दे पर भाजपा पर भारी पड़ती दिख रही है। सीएम भजनलाल और सीपी जोशी की जोड़ी बुरी तरह फ्लॉफ रही। अब प्रधानमंत्री मोदी ने संघ पृष्ठ भूमि और अनुभवी मदन राठौड़ को पार्टी के ‘कप्तान’ की जिम्मेदारी दी है। इससे समझा जा रहा है पार्टी को ताकत मिलेगी। राठौड़ को संगठन का अनुभव है, उसके साथ ही सभी गुटों से ठीक संबंध हैं।
पार्टी को एकजुट रखना बड़ी चुनौती
राठौड़ के सामने पहली चुनौती पार्टी को एकजुट रखने की है। अभी तक पार्टी बने प्रभारी अरुण सिंह को बदले जाने का भी असर दिखाई देगा। अरुण सिंह राजस्थान में खुद पार्टी बन गए थे। राधा मोहन दास अग्रवाल को प्रभारी बनाए जाने के बाद उम्मीद की जा रही है कि सभी गुटों की अब सुनवाई होगी। राजस्थान में गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे बेटे की वजह से नाराज हैं। सबसे वरिष्ठ होने के बाद भी राजे के बेटे दुष्यंत सिंह को मोदी 3.0 में भी जगह नहीं मिली। राजे आज भी काफी मजबूत मानी जाती हैं। विधायकों की बड़ी संख्या उनके साथ है। जहां तक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का सवाल है तो वह संगठन में प्रभारी बन हरियाणा की जिम्मेदारी देख रहे हैं। राजे और पूनिया के राठौड़ और अग्रवाल दोनों के साथ सही ट्यूनिंग बताई जाती है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि राठौड़ और अग्रवाल की जोड़ी बिखरी हुई बीजेपी को अब शायद एक करने में सफल रहेंगे जिससे कांग्रेस को टक्कर दी जा सके।
‘ताई’ पर फिर भरोसा बरकार
इधर, पार्टी ने विजया राहटकर को सह प्रभारी के पद पर बरकरार रखा है। विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा का चुनाव, उन्हें जहां भी जिम्मेदारी मिली वे उस पर खरी उतरी। यही कारण है कि राहटकर जिन्हें ‘ताई’ के नाम से भी जाना जाता है, उन्हें पार्टी ने नहीं हटाया है। उनकी पार्टी में भूमिका एक अभिभावक की तरह है। वे भजनलाल शर्मा से लेकर पार्टी के सभी नेता और कार्यकर्ताओं से जुड़ी हुई है। इसलिए पार्टी ने उन पर एक बार फिर भरोसा जताया है।